मनोज पांडेय की बर्खास्तगी से बदलेगी सियासत की तस्वीर, जिले में राजनीतिक उलटफेर संभव

मनोज पांडेय की बर्खास्तगी से बदलेगी सियासत की तस्वीर, जिले में राजनीतिक उलटफेर संभव

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रिपोर्ट-ओम द्विवेदी(बाबा)

मो-8573856824

ब्राह्मणों में अच्छी पैठ रखने वाले पूर्व मंत्री व विधायक डॉ. मनोज कुमार पांडेय की सपा से बर्खास्तगी के बाद राजनीतिक हलचल अचानक बढ़ गई हैं। कहीं न कहीं जिले के साथ ही प्रदेश की सियासी तस्वीर बदल सकती है।

पंचायत चुनाव से पहले यह फैसला सपा को नुकसान पहुंचा सकता है तो जिले की राजनीति में भी उलटफेर हो सकता है। ऊंचाहार विधानसभा से लगातार तीन बार जीत हासिल कर चुके मनोज कद्दावर नेता होने के साथ ही सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के खास भी हुआ करते थे।

वर्ष 2004 में मुलायम सरकार में राज्यमंत्री बनने के बाद विधायक डॉ. मनोज पांडेय ने 2007 में सपा के टिकट पर पहली बार सुल्तानपुर की चांदा विधानसभा से चुनाव लड़ा। हालांकि वह बसपा के विनोद सिंह से हार गए थे। वर्ष 2012 में सपा के टिकट पर ही ऊंचाहार सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कराई। वर्ष 2017 में भी पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य को चुनाव में करारी हार दी। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ही स्वामी प्रसाद मौर्या भाजपा छोड़ सपा में शामिल हुए और ऊंचाहार सीट से बेटे के टिकट को लेकर अड़ गए थे। मनोज ने भी सीट छोड़ने से इन्कार कर दिया।

टिकट को लेकर लंबा घमासान चला। चर्चा तो यहां तक बढ़ गई कि मनोज ने दिल्ली में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का भरोसा दे दिया था। इसकी भनक लगते ही ब्राह्मण वोटरों को बचाने के लिए सपा ने मनोज को टिकट दे दिया था। भाजपा ने मनोज को ऊंचाहार विधानसभा में अमरपाल मौर्या को उतारकर पूरी ताकत झोंकी, लेकिन मनोज ने सीट जीत ली। अब सपा से निष्कासित किए जाने के बाद मनोज की कमी कहीं न कहीं सपा के लिए नुकसानदेय होगी।

खटास तीन साल पहले आई, अब विदाई पर मोहर
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में ही विधायक डॉ. मनोज पांडेय की सपा से विदाई तय हो गई थी। चुनाव के दौरान सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और मनोज के रिश्तों में दरार पड़ गई थी। स्वामी प्रसाद मौर्या के सपा में शामिल होते ही ऊंचाहार विधानसभा सीट से टिकट को लेकर बड़ा घमासान हुआ था। इसके बाद विधान परिषद के चुनाव में मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा देकर भाजपा के प्रत्याशी के पक्ष में क्रास वोटिंग किए जाने के बाद यह तय हो गया था कि एक न एक दिन मनोज सपा से पूरी तरह से अलग हो जाएंगे।

वर्ष 2000 में भाजपा से बने थे नगर पालिका अध्यक्ष

वर्ष 1990 के दशक में भाई राकेश पांडेय की हत्या के बाद मनोज पांडेय राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए मैदान में आ गए। वर्ष 2000 में भाजपा के टिकट पर नगर पालिका रायबरेली के अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और जीते। हालांकि वर्ष 2004 में वे सपा में शामिल हो गए, उन्हें राज्यमंत्री भी बनाया गया था।

तो जिले में भाजपा को मिलेगी सियासी मजबूती
विधायक डॉ. मनोज पांडेय की वजह से जिले में भाजपा को मजबूती मिलने की संभावना जताई जा रही है। सियासी रणनीतिकार इस पर आंकलन करने में जुट गए हैं। वहीं ऊंचाहार के साथ ही सरेनी, हरचंदपुर, बछरावां और सदर विधानसभा में भी राजनीति के नए आयाम तय होने वाले हैं। कहीं न कहीं इसका खामियाजा सपा के साथ ही कांग्रेस को उठाना पड़ेगा।