साहित्य से जुड़े हर शख्स तक पहुंचेगा लेखनशाला : अभय प्रताप सिंह

साहित्य से जुड़े हर शख्स तक पहुंचेगा लेखनशाला : अभय प्रताप सिंह

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रिपोर्ट-ओम द्विवेदी(बाबा)
मो-8573856824

रायबरेली के छोटे से गांव बेनीकोपा ( कबीरवैनी ) के रहने वाले युवा लेखक अभय प्रताप सिंह की संस्था लेखनशाला " शब्दों की उड़ान दिन प्रति दिन नई बुलंदियों को छूती नज़र आ रही है और बिना भेदभाव किए तमाम साहित्यकारों को अपनी रचनाएं प्रकाशित करवाने का मौका भी दे रही है जोकि वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ - साथ अब युवा साहित्यकारों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

इस संस्था के संस्थापक अभय प्रताप सिंह  लेखनशाला को लेकर ये भी बताएं हैं कि मैं तमाम लोगों के खुशियों का जरिया बनना चाहता हूं। मुझे लगता था कि मैं लोगों के लिए, समाज के लिए, देश के लिए कुछ तो अच्छा करूं पर करना क्या था वो समझ के बाहर था। हर वक्त कुछ न कुछ सोचता था, हर वक्त प्रयास करता था कि मैं उन सभी आंसुओं को पोछूं जो रोज़मर्रा की वजह से बह रहे हैं। ये बात सही है कि मुझे लिखने का शौक है, साहित्य में रुचि है। शायद यही कारण है कि मैं जीवन के 8 साल साहित्य को दिया और कुछ किताबें भी लिखा।

एक ओर व्यक्तिगत संघर्ष तो दूसरी ओर उनकी तकलीफों को देख मेरे आंखो से बहते आंसू और छिपाने के बावजूद भी दिख रही चेहरे की उदासी बहुत कुछ बयां कर रही थी इसलिए मैं साहित्य को चुना और साहित्य ने मुझे बहुत कुछ दिया, बहुत कुछ सिखाया। शायद तभी छोटे - छोटे नेवालों को देखते मासूमियत, सालों का संघर्ष, कई दिनों की सूखी रोटी को पानी में डूबा खाते करीब 70 साल के बुजुर्ग, झिल्ली में बिखरे भोजन में कुछ ढूंढती उंगलियां, शारीरिक तकलीफों के बाद भी बोझा खींचते हांथ, ऐसी तमाम कहानियां जो मुझे की वास्त्विक होते दिखी और अपनी ओर खींचती नज़र आईं। 

इन तमाम कहानियों के बीच घिरा मैं और दूसरों की मदद करने को बेकाबू मेरे हांथ जो कांपती उंगलियों को भूल उनकी खुशियों के लिए बेताब, शायद यही कारण था कि मेरे पास सबकुछ होने के बावजूद भी दुखों में, तकलीफों में घिर साहित्य को अपनाने के लिए परेशान था। शायद यही कारण था कि मैं साहित्य को छोड़ नहीं पाया और हमेशा - हमेशा के लिए उससे जुड़ने लगा।

इन्हीं सब कारणों से मैं लेखनशाला स्थापित किया और लोगों से जुड़ने के लिए , उनकी मदद हेतु अपनी सारी जमा पूंजी इसी में लगा दिया। शायद यही कारण था कि अब ये सपना पूरे होते दिख रहा है। लेखनशाला संस्था आप सभी का परिवार है, आप सभी इस परिवार का हिस्सा हो। मेरा यही प्रयास है कि इस संस्था के माध्यम से हम उन सभी चेहरों तक पहुंचे जो लिखना चाहते हैं, लिखना जानते हैं पर वो अपनी रचनाएं प्रकाशित करवाने में असमर्थ हैं। लेखनशाला संस्था और पूरी टीम की ओर से मैं बस यही कहना चाहूंगा कि मेरा उद्देश्य आपकी खुशियों का जरिया बनना है, आपकी भावनाओं को समझना है।