मनोज पांडे की राह में रोड़े; दो दिग्गजों से टकराव तय?

मनोज पांडे की राह में रोड़े; दो दिग्गजों से टकराव तय?
मनोज पांडे की राह में रोड़े; दो दिग्गजों से टकराव तय?

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रिपोर्ट-ओम द्विवेदी(बाबा)

मो-8573856824

उत्तर प्रदेश के तीन विधायकों को निष्कासित कर सियासी हलचल तेज कर दी है। ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडेय, गौरीगंज से राकेश प्रताप सिंह और गोसाईंगज से अभय सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।

इनमें से सबसे अधिक चर्चा में हैं मनोज पांडेय, जिनकी भविष्य में भारतीय जनता पार्टी में एंट्री की अटकलें लगाई जा रही हैं।

सूत्रों के मुताबिक, मनोज पांडेय जल्द ही अपनी विधायक पद से भी इस्तीफा दे सकते हैं, और यदि ऐसा होता है, तो बीजेपी की रायबरेली इकाई में नया सियासी समीकरण बन सकता है – या यूं कहें, एक नया शीत युद्ध शुरू हो सकता है।

दो ध्रुवों में बंटी बीजेपी रायबरेली इकाई :

वर्तमान में रायबरेली बीजेपी दो गुटों में साफ तौर पर बंटी हुई है। एक गुट विधायक अदिति सिंह का है, जो कभी कांग्रेस में थीं और अब बीजेपी का चेहरा बन चुकी हैं। दूसरा गुट है एमएलसी और प्रदेश सरकार में मंत्री दिनेश सिंह का, जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के खिलाफ बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और हार का सामना किया।

अदिति सिंह और दिनेश सिंह के बीच पुराना राजनीतिक तनाव है। चुनाव प्रचार में भी अदिति की निष्क्रियता को लेकर सवाल उठे थे, जब वह अमित शाह की मौजूदगी वाली रैली में मात्र 10 मिनट के लिए पहुंची थीं। इसी रैली में मनोज पांडेय भी मंच पर मौजूद थे, जिससे उनके बीजेपी के करीब आने के संकेत मिले थे।

मनोज पांडेय के सामने चुनौती :

यदि मनोज पांडेय बीजेपी में आते हैं, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती इन दोनों गुटों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की होगी। न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी उनके और अदिति सिंह के बीच गहरी खाई मानी जाती है। उल्लेखनीय है कि मनोज पांडेय के भाई राकेश पांडेय की हत्या के मामले में अदिति सिंह के पिता स्व. अखिलेश सिंह का नाम आया था, और वे इस केस में जेल भी गए थे। ऐसे में मनोज और अदिति के बीच मेल की संभावना फिलहाल बेहद कमजोर नजर आती है।

वहीं, दिनेश सिंह और मनोज पांडेय का आपसी तालमेल भी सीमित और सशंकित बताया जाता है। अगर मनोज दोनों गुटों से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं, तो रायबरेली बीजेपी में उनका एक अलग तीसरा गुट उभर सकता है, जो संगठनात्मक रूप से पार्टी को भीतर से कमजोर कर सकता है।

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हाईकमान की भूमिका अहम :

अब निगाहें बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व पर हैं, जो इस जटिल सियासी समीकरण को किस तरह से संभालता है। क्या मनोज पांडेय को कोई अहम भूमिका देकर दोनों गुटों को संतुलित किया जाएगा, या फिर उनके प्रवेश से पहले समन्वय की रणनीति तय की जाएगी – यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल, रायबरेली की राजनीति में शांति के बजाय शीत युद्ध की आहट ज़रूर सुनाई दे रही है।