रायबरेली-आखिर कौन है डलमऊ तहसील में तैनात सतीश लेखपाल,आँगनबाड़ी की भूमि बेचने का लगा आरोप!

रायबरेली-आखिर कौन है डलमऊ तहसील में तैनात सतीश लेखपाल,आँगनबाड़ी की भूमि बेचने का लगा आरोप!
रायबरेली-आखिर कौन है डलमऊ तहसील में तैनात सतीश लेखपाल,आँगनबाड़ी की भूमि बेचने का लगा आरोप!

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रिपोर्ट-ओम द्विवेदी(बाबा)
मो-8573856824

जिस पर आरोप वही कर रहा है जाँच,आखिर क्या हो पाएगी जाँच


रायबरेली-

जिस कर्मचारी के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप की शिकायत मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल पर की जाए, उसकी जाँच का जिम्मा अगर उसी कर्मचारी को सौंप कर जाँच आख्या लगाई जाए तो उस जाँच की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होना लाजिमी है। जी हाँ ! हम बात कर रहे हैं डलमऊ तहसील क्षेत्र की ग्रामसभा बसंतपुर कठोईया की, जहाँ ग्राम प्रधान ने लेखपाल पर गंभीर आरोप लगाये हैं। बसंतपुर कठोईया ग्राम प्रधान अनिल सिंह चौहान का आरोप है कि चार्ज पर आये लेखपाल - सतीश कुमार ने ग्रामसभा के अंदर आँगनबाड़ी की प्रस्तावित भूमि को चोरी-छिपे सत्तर हजार रुपये में बेच डाला है, जिस पर अब नलकूप लग चुका है। ग्राम प्रधान का कहना है कि वह सरकार की मंशा के अनुरूप कार्य करते हुए अपनी ग्रामसभा में - विकास कार्यों को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जिससे शासन द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ आम जनमानस तक पहुंच सके, इसी के मद्देनजर ग्राम बसंतपुर कठोईया में भूमि प्रबंधन समिति के द्वारा गाटा संख्या 889 पर आँगनबाड़ी प्रस्तावित हुई थी, जिसे लेखपाल ने 70000 रुपये में बेच डाला है। ग्राम प्रधान का कहना है कि वह इसकी लिखित शिकायत जिलाधिकारी से लेकर उपजिलाधिकारी डलमऊ तक से कर चुके हैं, परन्तु मामले में कोई कार्यवाही नही हुई। आरोप तो यह भी है कि उच्चाधिकारियों तथा आईजीआरएस पर शिकायत किये जाने के बाद उसी आरोपी लेखपाल को ही खुद पर लगे आरोपों की जाँच का जिम्मा सौंप दिया गया, जिसमें लेखपाल ने लीपापोती करते हुए खुद पर लगे आरोपों में स्वयं को पाक साफ बताते हुए अपनी आख्या भेज दी थी, जिस पर उच्चाधिकारियों ने आँख बंद कर भरोसा कर मामले से किनारा काट लिया है।


लेखपाल को हटाये बिना मामले की निष्पक्ष जाँच होना असम्भव !

ग्राम प्रधान अनिल सिंह का कहना है कि वर्तमान लेखपाल की वजह से ग्रामसभा का विकास होने में कठिनाइयाँ सामने आ रही हैं, क्योंकि शासन द्वारा संचालित योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए ग्राम प्रधान का सहयोग करने में लेखपाल को जरा सी भी दिलचस्पी नही है। जब कभी चकमार्गों व तालाबों के निर्माण व दुरुस्तीकरण के लिए पैमाईश हेतु लेखपाल को फोन किया जाता है तो लेखपाल फोन नही उठाते, अगर फोन उठाते भी हैं तो प्रति पैमाईश पाँच हजार रुपये की खुली माँग करते हैं, उनकी मांग पूरी ना करने पर वह पैमाईश में हीलाहवाली करते है। फिलहाल मामला गंभीर है, ग्रामीण भी लेखपाल पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं, परन्तु उच्चाधिकारियों के द्वारा लेखपाल को क्षेत्र से ना हटाना उनकी मंशा पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।