रायबरेली-ऊंचाहार के एक मकबरे में दफन है मुगल शाही खानदान के मोहब्बत की दास्तां, जाने पूरी कहानी

रायबरेली-ऊंचाहार के एक मकबरे में दफन है मुगल शाही खानदान के मोहब्बत की दास्तां, जाने पूरी कहानी
रायबरेली-ऊंचाहार के एक मकबरे में दफन है मुगल शाही खानदान के मोहब्बत की दास्तां, जाने पूरी कहानी

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   रिपोर्ट-सागर तिवारी

ऊंचाहार - रायबरेली-महबूबा की याद में तो बहुतों ने मकबरे या स्मारक बनवाए होंगे, लेकिन ऊंचाहार में एक ऐसा मकबरा है, जिसे बेगम ने शौहर की याद में बनवाया था। स्थानीय इतिहास के जानकारों के अनुसार  यह मकबरा भी शाहजहां के जमाने में तामीर हुआ , जिन्होंने अपनी बेगम की याद में ताजमहल का निर्माण कराया था। ये आलीशान रोजा [मकबरा] नजमुद्दीन की याद में उनकी


 महबूबा बेगम माह परवर ने बनवाया था। हालांकि रायबरेली गजेटियर के अनुसार इसे अब्दुल खालिक ने बनवाया था । 
        17वीं शताब्दी में बने इस मकबरे की वास्तुकला शैली काफी हद तक ताजमहल जैसी है। महबूबा माह परवर  के बारे में बताया जाता है कि वे शाही खानदान से थीं। ऊंचाहार के जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले नजमुद्दीन दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ते थे , जहां उनकी मुलाकात माह परवर से हुई और दोनो एक दूसरे को दिल दे बैठे । उस समय शाहजहां को औरंगजेब ने कैद कर लिया था और उसका जुल्म शाही परिवार पर जारी था । उसके जुल्म से बचने के लिए माह परवर काफी राशि  खजाने के साथ दिल्ली से कूच कर गई और पहले आगरा फिर गंगा नदी के रास्ते ऊंचाहार के कोटरा बहादुर गंज गांव पहुंची । उनके साथ कुछ उनके खास सहयोगी भी थे। यहां पर गंगा नदी के किनारे कोटरा बहादुर गंज गांव के पास उन्होंने एक सराय का निर्माण कराया और यहीं रुक गई । बताया जाता है कि नजमुद्दीन रोज रात में घोड़े से उनसे मिलने जाया करते थे । बाद में उन्होंने माह परवर से निकाह किया। जानकार बताते हैं कि माह परवर ने ही कस्बे के बड़ा इमामबाड़ा का भी निर्माण कराया था और नजमुद्दीन की मौत के बाद इस मकबरे को उनकी याद में बनवाया गया । 

*गजेटियर में अलग है कहानी*

वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी बताते हैं कि ऊंचाहार के लोगों में इस मकबरे को लेकर जो कहानी प्रचलित है ,वो किंवदंती मात्र है । रायबरेली गजेटियर में इसे अब्दुल खालिक ने बनवाया था ,जो नजमुद्दीन और माह परवर के वंशज थे । इस मकबरे के पास में ही एक और मकबरा था , जिसका गुंबद आज भी वहां स्थित है । फिरोज नकवी बताते हैं कि यह मकबरा वीरान था । करीब चार दशक पहले कस्बे के समाजसेवी मो शब्बर नकवी ने इसमें कुछ आंतरिक हिस्से की मरम्मत कराई और अपनी संस्था समाज सुधार समिति के दफ्तर के रूप में इसका प्रयोग शुरू किया था।

 **गुमनामी के साज में मिला योगी का*  *'ताज'*


नगर के दीवान तालाब के पास स्थित  निहायत खूबसूरत आलीशान यह मकबरा गुमनाम हो गया था । मोहब्बत के साज की इस ऐतिहासिक धरोहर को योगी सरकार ने नया ताज दिया है । सरकार ने इस मकबरे को राजकीय धरोहर घोषित किया है ।  जमीन से छह 15 की ऊंचाई पर बने मकबरे की लंबाई करीब 60 फिट और इतनी ही चौड़ाई है। चारों कोनों पर चार सुंदर बुर्जियां हैं। लखोरी ईट से बने मोटी दीवार वाले मुख्य भवन की लंबाई और चौड़ाई 77-77 फिट है। दालान के मध्य में बड़ा हॉल है, उसके ऊपर ऊंची गुंबद है। हॉल में एक कब्र है। जिसको लेकर सरकारी गजेटियर और स्थानीय लोगों में विरोधाभाषी बातें है ।