लिंग बदलकर लड़की से लड़का बने शरद सिंह अब बने पिता, पत्नी ने दिया बेटे को जन्म

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के शाहजहांपुर (Shahjahanpur) में जेंडर बदलवाने वाले शरद सिंह के घर किलकारियां गूंजी हैं. उनकी पत्नी ने एक प्राइवेट हॉस्पिटल में बेटे को जन्म दिया है.
शरद काकोरी ट्रेन कांड से जुड़े क्रांतिकारी रोशन सिंह के परपोते हैं. वे दो साल पहले जेंडर बदलवाकर महिला से पुरुष बने थे. पहले उनका नाम सरिता सिंह था.
इंडिया टुडे के इनपुट के मुताबिक, शरद सिंह ने साल 2021-22 में जेंडर बदलवाने की प्रक्रिया शुरू की थी. दरअसल लड़की के तौर पर जन्म लेने के बावजूद हार्मोनल असंतुलन के चलते उनके हाव भाव लड़कों जैसे थे. और उनकी व्यक्तिगत पंसद (हेयरस्टाइल, ड्रेसिंग सेंस) भी लड़कों से मिलते जुलते थे. इस अवस्था को 'जेंडर डिस्फोरिया' कहते हैं. इसमें आम तौर पर परिवार और समाज बच्चे का लिंग देखकर उसका जेंडर तय कर देता है. लेकिन कुछ केस में बच्चा बड़ा होने के बाद अपने निर्धारित जेंडर में सहज महसूस नहीं करता है.
ऐसे में साल 2022 में उन्होंने लखनऊ में हार्मोंस थेरेपी करवाई. इससे उनके चेहरे पर दाढ़ी उग आई. और आवाज भी भारी हो गई. इसके बाद साल 2023 की शुरुआत में उन्होंने मध्य प्रदेश के इंदौर में सर्जरी करवा कर जेंडर बदलवा लिया. जेंडर चेंज होने की प्रक्रिया पूरी होने पर शाहजहांपुर के तत्कालीन डीएम उमेश प्रताप सिंह ने उन्हें पुरुष होने का सर्टिफिकेट दिया. और शरद रोशन सिंह के नाम से उन्हें नई पहचान मिली.
नया नाम और पहचान मिलने के बाद 23 नवंबर 2023 को शरद ने पीलीभीत की रहने वाली अपनी महिला मित्र सविता सिंह से शादी कर ली. 2 अप्रैल को प्रसव पीड़ा होने पर सविता सिंह को एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. जहां शाम को ऑपरेशन से उन्होंने बेटे को जन्म दिया.
पिता बनने के बाद खुशी जाहिर करते हुए शरद सिंह ने कहा,
उनके परिवार में 26 साल बाद पुत्र का जन्म हुआ है. हर इंसान का सपना होता है कि उसे संतान का सुख मिले. और जिन परिस्थितियों से निकलकर मुझे पिता बनने का सुख मिला है. यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी है.
शरद सिंह शाहजहांपुर जिले के नवादा दारोबस्त गांव के रहने वाले हैं. और पास के गांव के प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के तौर पर तैनात हैं.
कैसे होती है सेक्स रिअसाइन्मेन्ट सर्जरी
सेक्स चेंज ऑपरेशन के लिए ऑपरेशन से पहले इस बात की पुष्टि की जाती है कि इसकी चाहत रखने वाले शख्स को 'जेंडर डिस्फोरिया' है या नहीं. इसके लिए सायकायट्रिस्ट और साइकोलॉजिस्ट की मदद लेनी पड़ती है. सायकायट्रिस्ट ये तय करने के लिए कि मामला 'जेंडर डिस्फोरिया' का है या नहीं, पेशेंट के साथ लंबी सेंशन्स और बातचीत करते हैं. जेंडर डिस्फोरिया डायग्नोस होने के बाद ट्रीटमेंट की शुरुआत होर्मोनल थेरेपी से की जाती है. यानी जिस हार्मोन की जरूरत है वो दवाओं और इंजेक्शन के जरिए शरीर में पहुंचाया जाता है.
बीबीसी हिंदी से बाताचीत में डॉ. नरेंद्र कौशिक ने बताया
दो तीन डोज के बाद ही असर दिखना शुरू हो जाता है. मनचाहा हॉर्मोन मिलने के बाद लोग अच्छा महसूस करने लगते हैं. उनका मिजाज अच्छा होने लगता है. और वो खुश रहने लगते हैं.
इसके बाद सर्जरी की तैयारी होती है. सर्जरी कराने वाले की उम्र कम से कम 20 साल होनी चाहिए. 20 साल से कम उम्र होने पर माता-पिता की सहमति जरूरी है. ऑपरेशन के लिए कम से कम एक सायकोलॉजिस्ट की मंजूरी भी जरूरी है.



