रायबरेली-एनटीपीसी में श्रमिक आंदोलन का सच ?

रायबरेली-एनटीपीसी में श्रमिक आंदोलन का सच ?

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रिपोर्ट-सागर तिवारी

जब निविदा में ही है कम रेट तो ठेकेदार कैसे करे पूरा भुगतान 

ऊंचाहार , रायबरेली - एनटीपीसी में श्रमिक इस समय सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं । आम सहानुभूति श्रमिकों के साथ है किंतु इस मांग का दूसरा सच भी बड़ा कड़ुआ है । श्रमिक जिस काम में अपनी पूरी मजदूरी मांग रहे हैं , उस काम के निविदा आवंटन में ही चालीस से पचास फीसदी कम करके हुआ है , ऐसे में ठेकेदार श्रमिकों को कैसे पूरी मजदूरी दे सकता है  ?
        दरअसल श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी भुगतान में सबसे बड़ा रोड़ा एनटीपीसी में निविदा आवंटन की प्रक्रिया है । श्रमिक चाहते हैं कि उन्हें भारत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाए । यह भुगतान उन्हें कागज पर सीधे श्रमिकों के बैंक खाते में किया जाता है किंतु श्रमिकों से ठेकेदार कुछ रुपया वापस ले लेता है । यह ठेकेदार की मजबूरी है । क्योंकि जो काम उसे एक रूपये में करना चाहिए , उसे वह चालीस से पचास पैसे में करना पड़ रहा है । होता यह है कि एनटीपीसी में हाउस कीपिंग कार्य जिसमें केवल श्रमिकों की सप्लाई की जाती है उस काम का जब टेंडर होता है कि ठेकेदारों में काम पाने की आपसी स्पर्धा होती है और जिस काम का रेट एनटीपीसी ने तय कर रखा है , इसके आधे रेट पर टेंडर डाला जाता है और जो न्यूनतम रेट होता है , उसी ठेकेदार को काम का आवंटन कर दिया जाता है । यहां पर एनटीपीसी अधिकारी यह नहीं देखते कि जब न्यूनतम मजदूरी के तय रेट से ठेकेदार आधा रेट पर टेंडर डाल रहा है और उसे उसी आधे रेट पर कार्य का आवंटन किया जा रहा है तो वह श्रमिकों को कहां से पूरा भुगतान देगा ?
       इस प्रकार से श्रमिकों का शोषण निविदा आवंटन के दस्तावेजों में ही लिख दी जाती है । अब जब श्रमिक अपना पूरा हक मांग रहे हैं तो पूरा सिस्टम ठेकेदार को ही दोषी मान रहा है । जबकि सच्चाई से सभी वाकिफ है । यदि इस समय श्रमिकों को पूरा भुगतान दिलाने का कड़ाई से पालन शुरू हो गया तो एनटीपीसी के आधे ठेकेदार काम ही छोड़ देंगे । या फिर यदि एनटीपीसी ने निविदा की न्यूनतम दर को छोड़कर अपने तय रेट पर भुगतान करना शुरू किया तो एनटीपीसी को हर माह कई करोड़ का चूना लगेगा।