Raibareli-तीन वर्षों बाद होने वाली माँ महामाई की सात दिवसीय पूजा का कल होगा समापन*

Raibareli-तीन वर्षों बाद होने वाली माँ महामाई की सात दिवसीय पूजा का कल होगा समापन*

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रिपोर्ट-सुधीर अग्निहोत्री

*अपने समय के भविष्य वक्ता रहे पण्डित गुलाब द्विवेदी द्वारा शुरू की गई थी पूजा : शिवशंकर त्रिवेदी*



सरेनी-रायबरेली-माँ गंगा के आंचल में बसा प्यारा बैसवारा हमेशा से अपने ज्ञान की अलौकिक छटा बिखेर हर एक को अपनी ओर मन्त्रमुग्ध करता रहा है!यहाँ की हवा में घुली भक्ति तथा वात्सल्य की भावना सदियों से श्रद्धालुओं को आनन्दित व प्रफुल्लित कर मोक्ष के खोज की ओर प्रेरित करती रही है!भक्ति,शक्ति,श्रद्धा,आस्था,विश्वास जैसी महनीय बातों से विभूषित सरेनी क्षेत्र के धूरेमऊ गांव में स्थित माता महामाई के मन्दिर में होने वाली सात दिवसीय पूजा में प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व है!सात दिवसीय पूजा के पहले दिन का आगाज जाप से शुरू होता है!यह जाप आगामी पांच दिनों तक चलता है!इन पांच दिनों में से ढाई दिन समस्त ग्रामवासी खाना घर के बाहर बनाते हैं!खाना बाहर बनाने की प्रक्रिया तीसरे दिन से पांचवे दिन सुबह तक चलती है!पांचवे दिन सुबह घर के बाहर पुआ बनाने की अनोखी परम्परा देखने को मिलती है,जिन्हें घर में न खाकर मन्दिर के समीप बाग में खाया जाता है!इसी शाम गांव के दूसरे छोर पर स्थित मां शीतला माता के मन्दिर में माता रानी की छठी भी भरी जाती है!जिसमें विभिन्न प्रकार के पकवान बना लोग माता रानी को भोग लगाते हैं!इसके अगले यानी छठें दिन गांव के बीच में स्थित माँ आनन्दी देवी के मन्दिर में ग्रामीणों द्वारा विशाल हवन किया जाता है!इस हवन का मुख्य उद्देश्य सर्वमंगल की कामना होती है!इस पूजा के सातवें दिन भक्ति तथा आस्था का मनोरम दृश्य देखने के लिए हजारों की तादाद में श्रद्धालुगण मन्दिर में एकत्र होते हैं,इस दिन महामाई मन्दिर के समीप बाग में खाना बनता है तथा स्थानीय लोगों द्वारा जगह-जगह भण्डारे व प्रसाद वितरण का आयोजन किया जाता है!94 वर्षीय शिवशंकर त्रिवेदी उर्फ बाबू त्रिवेदी बताते हैं कि सातवें दिन की सुबह पंचवक्तेश्वर महादेव मन्दिर में विशाल हवन कर माता रानी का श्रृंगार स्थानीय माली द्वारा किया जाता है!श्रृंगार में माता रानी को सोने चांदी के आभूषण पहना नयी नवेली दुल्हन की तरह सजाया जाता है!उसके बाद माता रानी की प्रतिमा को ढोल नगाड़ा तथा बैंडबाजों के साथ माली अपने कन्धों में  रखकर गाँव से लगभग एक किलोमीटर की दूरी में स्थित महामाई मन्दिर की ओर प्रस्थान करता है!इस एक किलोमीटर की यात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम माली के पीछे माता रानी के जयकारे लगाता तथा नृत्य करते हुए चलता है!इस प्रकार माता जी की मूर्ति जो मिट्टी की बनी होती है,उसको गाँव से लाकर धूरेमऊ गांव के बाहर बाग में स्थित महामाई के मन्दिर में स्थापित कर दिया जाता है!जिसके बाद भक्त लम्बी कतारों में लग माता रानी के दर्शन करते हैं तथा मन्नते मांगते हैं!श्रृंगी,गर्ग तथा भृगु ऋषी की तपोस्थली रहा सरेनी क्षेत्र सदा से भक्ति भाव व आस्था का केन्द्र बिन्दु रहा है!पूजा के समय सात सात पण्डितों के मन्त्रोच्चारण की करतल ध्वनियों से गुंजित वातावरण में पक्षियों का कलरव सुन ऐसा प्रतीत होता है मानों आनन्द के बीज प्रस्फुटित हो रहें हों!सर्व कष्टहारिणी मंगलदायनी परमसिध्देश्वरी माता महामाई के भव्य पूजन का कार्यक्रम क्षेत्र वासियों की सहायता से विगत कई वर्षों से अनवरत हर तीसरे वर्ष होता रहा है,जिसमें दूर दराज  से पधारे श्रध्दालुओं द्वारा भक्तिमय वातावरण में सराबोर हो सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् की भावना के साथ सर्वमंगल की कामना की जाती है!