रायबरेली-पितृ पक्ष का पहला तर्पण और श्राद्ध कल, गंगा तटों पर हुई तैयारी

रायबरेली-पितृ पक्ष का पहला तर्पण और श्राद्ध कल, गंगा तटों पर हुई तैयारी

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      रिपोर्ट-सागर तिवारी

ऊंचाहार - रायबरेली - सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है. पितृ पक्ष की अवधि में पितरों को पिंडदान, तर्पण प्रदान किया जाता है और श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है. वैदिक पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष का शुभारंभ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होता है. इस वर्ष पितृ पक्ष का शुभारंभ 18 सितंबर आज  बुधवार से होगा. शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि पितृ पक्ष की अवधि में पितर अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए धरतीलोक पर आते हैं. ऐसे में इस दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक होता है । इस दौरान बड़ी संख्या में लोग गंगा घाट पर पिंडदान के लिए आते हैं । जिसको लेकर क्षेत्र के गोकना गंगा घाट पर तैयारी की गई है । गंगा घाट के वरिष्ठ पुरोहित जितेंद्र द्विवेदी ने बताते हैं कि पितृ पक्ष में पूर्वज अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए स्वर्ग लोक से धरती लोक पर आते हैं। इस दौरान परिवार के सदस्य उन्हें प्रसन्न करने के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं। जिससे उन्हें लाभ प्राप्त होता है। पितृपक्ष की अवधि में नई चीजों की खरीदारी की मनाही है। इस अवधि में तामसिक भोजन करने से बचना चाहिए।  पितृपक्ष की अवधि में लोहे के बर्तन में खाना पकाने से बचना चाहिए। इसकी जगह पीतल, तांबा या अन्य धातु के बर्तनों का प्रयोग ही उत्तम होता है।
शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष की पवित्रता को बनाए रखने के लिए इस अवधि में बाल या दाढ़ी नहीं खटवानी चाहिए। साथ ही नाखून कटवाने की भी मनाही है. इस दौरान प्याज, लहसुन इत्यादि का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष में जरूरतमंद लोगों को भोजन वस्त्र या धन का दान करना चाहिए। साथ ही जीव-जंतुओं की सेवा करनी चाहिए. इस दौरान गाय, कुत्ते या कौवे को भोजन करवाने से विशेष लाभ मिलता है और कई प्रकार के दोष दूर होते हैं.
पितृ दोष से मुक्ति के लिए भी पितृ पक्ष को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए पितृ पक्ष की अवधि में पितृ दोष निवारण उपायों को करना चाहिए, इससे विशेष लाभ प्राप्त होता है और जीवन में आ रही कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं. साथ ही पितृ पक्ष की अवधि में इन नियमों का पालन करने से व्यक्ति को पितरों के साथ-साथ देवी-देवताओं का ही आशीर्वाद प्राप्त होता है।